कोलकाता, 6 नवंबर (हि.स.)। अमर स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास को उनकी जयंती के मौके पर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई है। कोलकाता में स्थित चितरंजन दास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम में उनके भतीजे प्रसाद रंजन दास, इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन के जनरल सेक्रेरेटरी सौम्या शंकर बोस के अलावा मेयर फिरहाद हकीम और कई अन्य प्रबुद्ध लोग पहुंचे थे। हकीम ने कहा कि राष्ट्रवाद के जो पथ देशबंधु चितरंजन दास जैसे क्रांतिकारियों ने दिखाए हैं वह आने वाले दिनों में पीढ़ियों को सदियों तक प्रेरित करती रहेंगी।
प्रसाद रंजन ने कहा कि देशबंधु चितरंजन दास ने अपनी पूरी हस्ती को मां भारती की आजादी के लिए समर्पित कर दिया था। हमें गौरव है उनके परिवार के सदस्य होने पर। उन्होंने कहा कि बंगाल आजादी की लड़ाई का केंद्र बिंदु था और चितरंजन दास क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा स्रोत थे। जब तक इतिहास उन्हें याद रखेगा तब तक राष्ट्रवाद की ज्वाला कभी धुमिल नहीं होगी।
चित्तरंजन दास का जन्म 5 नवंबर 1870 को कोलकाता में हुआ। उनका परिवार मूलतः ढाका के बिक्रमपुर का प्रसिद्ध परिवार था। चितरंजन दास के पिता भुबनमोहन दास कलकत्ता उच्च न्यायालय के जाने-माने वकीलों में से एक थे। वे बँगला में कविता भी करते थे। उनका परिवार वकीलों का परिवार था।
सन् 1890 ई. में बी.ए. पास करने के बाद चितरंजन दास आइ.सी.एस्. होने के लिए इंग्लैंड गए और सन् 1892 ई. में बैरिस्टर होकर स्वदेश लौटे। शुरू में तो वकालत ठीक नहीं चली। पर कुछ समय बाद खूब चमकी और इन्होंने अपना तमादी कर्ज भी चुका दिया।
वकालत में इनकी कुशलता का परिचय लोगों को सर्वप्रथम ‘वंदेमातरम्’ के संपादक अरविंद घोष पर चलाए गए राजद्रोह के मुकदमे में मिला और मानसिकतला बाग षड्यंत्र के मुकदमे ने तो कलकत्ता हाईकोर्ट में इनकी धाक अच्छी तरह जमा दी। इतना ही नहीं, इस मुकदमे में उन्होंने जो निस्स्वार्थ भाव से अथक परिश्रम किया और तेजस्वितापूर्ण वकालत का परिचय दिया उसके कारण समस्त भारतवर्ष में ‘राष्ट्रीय वकील’ नाम से इनकी ख्याति फैल गई। इस प्रकार के मुकदमों में ये पारिश्रमिक नहीं लेते थे। महात्मा गांधी ने उन्हें देश बंधु का उपनाम दिया था। हिन्दुस्थान समाचार / ओम प्रकाश