लोक डेस्क, कोलकाता, 17 जनवरी। भारतीय जनता पार्टी के गैर बांग्ला भाषी नेताओं को “बाहरी” करार देने की ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की रणनीति उल्टी पड़ती जा रही है। विधानसभा चुनाव से पहले राज्य भर में ऐसा माहौल बन रहा है जिससे गैर बांग्ला भाषी मतदाता यानी हिंदी, ओड़िया, तेलुगू और देश के अन्य राज्यों से आकर बसने वाले लोग ममता बनर्जी की पार्टी से दूर होते जा रहे हैं। यह खुलासा खुद ममता बनर्जी की पार्टी के आंतरिक सर्वे में हुआ है। दरअसल जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा अथवा भाजपा का कोई भी केंद्रीय नेतृत्व बंगाल आकर जनसभा करता है तो ममता बनर्जी उसके आरोपों का जवाब देने के बजाय उसे बाहरी कहती हैं। इसका खामियाजा इस तरह से भुगतना पड़ा है कि भारतीय जनता पार्टी ने ऐसे लोगों के बीच बड़े पैमाने पर यह बात स्थापित करने में सफलता पाई है कि सीएम के लिए बांग्लादेशी घुसपैठिए, दूसरे राज्यों से आए मुस्लिम और गैर हिंदू समुदाय के लोग तो अपने हैं लेकिन हिंदी भाषी अथवा देश के दूसरे राज्यों से आने वाले हिंदू समुदाय के लोग गैर हैं। अंदर खाने यह भी बात हो रही है कि अगर ममता बनर्जी की सरकार दोबारा बनती है तो यहां हिंदी भाषियों का रहना मुश्किल होगा। इसलिए लोग तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ मतदान का मन बना चुके हैं। सीएम की पार्टी ने जो आंतरिक सर्वे कराया है उसमें भी इस बात का इशारा मिला है जिसकी वजह से तृणमूल कांग्रेस चिंता में पड़ी हुई है।
तृणमूल नेताओं के मुताबिक भाजपा भरपूर कोशिश कर रही है कि गैर बंगाली वोटरों को अपने साथ कर ले। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और रणनीतिकार ने बताया, ” हमें पता है कि भाजपा पूरी कोशिश करेगी कि गैर बंगाली वोटरों को अपने साथ करे और भाजपा कहेगी कि तृणमूल को गैर बंगाली वोटरों की परवाह नहीं है। पर इसपर हम लोग काम कर रहे हैं। तृणमूल के लिए बंगाली की परिभाषा में वे सभी लोग हैं जो कि बंगाल में रह रहे हैं और बंगाल की संस्कृति को समझते हैं। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां से आते हैं। उन सभी का बंगाल में स्वागत है और आपको तृणमूल के अभियान में यह चीज नजर आएगी। जो लोग बंगाल की संस्कृति पर हमला कर रहे हैं और उसको समझते नहीं हैं वे बाहरी हैं।”
तृणमूल नेता सुखेंदु शेखर राय ने कहा यह गलत है कि हम भाजपा को बाहरी कह रहे हैं। अगर भाजपा की भाषा को देखें तो उनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतना है। वे बंगाल इसलिए नहीं आना चाहते हैं कि विकास करें और लोगों की भलाई करें। वह बाहुबलियों की भाषा बोलते हैं और हिंसा की स्थिति पैदा करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें बंगाल के गैर बंगाली लोगों पर गर्व है और बंगाल हमेशा एक मिनी इंडिया रहा है।
बता दें कि पिछले महीने दिसंबर में दिलीप घोष ने कहा था कि जो लोग बाहर से आए हैं उनका बंगाल के विकास में अहम योगदान है। उन्होंने तृणमूल पर बंटवारे की राजनीति करने का आरोप लगाया भी लगाया था। पार्टी नेताओं के मुताबिक राज्य में गैर बंगाली वोटरों का मत 15 फीसदी है। यह कोलकाता में काफी असरदार भी है। कोलकाता में आधी आबादी गैर बंगाली वोटरों की है। कोलकाता में पड़ोसी राज्यों से बहुत से लोग काम करने आते हैं यहां रहने वाला मारवाड़ी समुदाय बहुत समृद्ध है और प्रभावशाली है।
माकपा के पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम ने बताया कि तृणमूल और भाजपा की राजनीति एक ही है। अगर आप तृणमूल का इतिहास देखें तो यह भाजपा के साथ लंबे वक्त तक रही है। उनके बीच कोई वैचारिक मतभेद नहीं है। अब ये दोनों भीतरी और बाहरी की राजनीति कर रहे हैं। बांटने की राजनीति कर रहे हैं ।